न पास हो, न दूर हो,
मन की आंखों से देखू तो,
तुम यही-कही नज़र आते हो.
न बेकरारी है, न शुकून है,
तेरे बिना ज़िन्दगी अजीब है,
न नशा है, न होश है,
तेरे बिन ज़िन्दगी खामोश है.
सोचता हूँ अब तुम शिकवा करोगे हमसे,
कह दोगे की अब न मिला करो यूँ मुझसे,
तोड़ दो दिल मेरा, बन जाओ बेरहम अब,
शायद भुला देना तुम्हे, मेरा नसीब है.
पत्थर का ये दिल अब किस काम का है जनम,
प्यार करना इसे जब आता नही सनम,
इस पत्थर पे भी बस तेरा नाम है सनम,
कहते है की पत्थर की लकीर नही मिटती हमदम.
न खुशी है, न गम है,
ये कैसी ज़िन्दगी सनम है,
मांगता हूँ अब बस एक ही दुआ इस रब से,
तुझे भुला दू मैं अब से.
Wednesday, October 11, 2006
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment