The poet inside turned romantic this time :)
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वो दिन भी कुछ अजीब थे,
जब छू लिया था तुने दिल को,
वो रातें भी कुछ खुशनसीब थी,
जब तुम आया करते थे ख्वाबों में.
वो तेरी जुल्फों से उन पलकों का छुप जाना,
फ़िर झटके से जुल्फें हटाके तेरा नज़ारे उठाना,
याद आता है फ़िर तेरे गालों का सुर्ख हो जाना,
कैसे भूलें उन नाज़ुक लबों से तेरा मुस्कुरा देना.
ज़चता नही कोई तुम्हारे सिवा,
तुने ऐसा क्या जादू कर दिया,
तेरी खुशी मुझे अजीज है,
दूर हो के भी तू करीब है.
Monday, September 10, 2007
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