आज फ़िर से सोच रहा हूँ मैं की क्यूँ,
दिल और दिमाग साथ नही चलते,
दोनों एक ही शरीर के है हिस्से,
फ़िर जाने क्यों है इतने झगड़ते.
दिल है जीने की वजह,
दिमाग जीने की राह बताये,
दिल है प्रेम दीपक,
दिमाग जीवन-ज्ञान सीखाये.
दिल के बात सुने कोई, या सुने दिमाग की,
ये उलझन जाने कौन सुलझाए,
दिल जाने एहसास, दिमाग अनुभव से रह दिखाए,
दोनों जब मिल जाए साथ तो सच्ची खुशहाली आए.
Thursday, November 15, 2007
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
Very good poem, I loved it Nand bhaiya...keep writing
Thank u :). I will.
Post a Comment