तुम मत करना इंकार प्रिये,
मैं प्यार सजा के लाया हूँ|
दे सकता हूँ उपहार कई,
हीरे-मोती या हार कोई,
ये सब तो हैं बेजान प्रिये,
मैं मन कंचन सा लाया हूँ|
तुम मत करना इंकार प्रिये,
मैं प्यार सजा के लाया हूँ|
इस दुनिया के कोलाहल में,
दिल की सुननी कुछ खेल नही,
तुम कर लो थोड़ा ध्यान प्रिये,
मैं दिल की धड़कन लाया हूँ|
तुम मत करना इंकार प्रिये,
मैं सपनो का कल लाया हूँ|
Friday, February 13, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
6 comments:
bandhiyan kavita hain....dil ko chuta hua. Gud work
hello bhaiya..!!
bahut dino baad aapke blog par kuchh padhne ko mila... bahut hi khoob likha hai aapne.
"दे सकता हूँ उपहार कई,
हीरे-मोती या हार कोई,
ये सब तो हैं बेजान प्रिये,
मैं मन कंचन सा लाया हूँ|"
pyar ki gehraayi saaf jhalak rahi hai.
:)
Puneet Sahalot
Hmm... bahut achha hai. Dil dard karne laga abhi... :)
Puneet: Thanks :). kafi busy raha last 2-3 months.
G & Sneha: Thank you so much. Dil ko chhoo gaya, bas kavita sarthak ho gayi :).
Very cute poem :)
thanks anku. keep coming to my blog :)
Post a Comment