न दिया है, न बाती है,
माँ! ये कैसी दीवाली है,
न पटाखे है, न वो धूम है,
माँ! ये कैसी अधूरी खुशहाली है.
यूँ तो दोस्तों का साथ है माँ,
पर सर पे तेरा हाथ नही,
दस तरह की मिठाई है माँ,
पर तेरे हाथ का कुछ भी नही.
इतनी दूर चला जाऊंगा,
ये कब सोचा था, माँ.
तेरे बिन न कोई त्यौहार,
न कोई दीवाली है
Friday, November 09, 2007
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3 comments:
Nice poem...you've expressed your mental state very well
Thanks anku :)
Hello bhaiya..!!!
I liked your poem very much n I have included this poem on my blog along with your name. I hope you won't mind.
my blog is : http://imajeeb.blogspot.com
ok.. bye..
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