Thursday, September 27, 2007

निशब्द

The idea of this poem was floating inside for quite sometime and today when I feel bored it has actually taken a shape. I will try to write a happy one next time :)
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शब्द तेरे दिल में चुभते रहे,
और मैं निशब्द खड़ा देखता रहा,
तेरी पड्छाई मुझसे उलझती रही,
और तेरी पड्छाई से दूर चलता रहा

मेरे एहसास हरपाल सिमटते रहे,
तुम हँसती रही, समझती नही,
दूर इतने हो गए है अब,
तेरी धड़कन भी दिल तक पहुचती नही

तेरा रास्ता अलग, तेरी मंजिल अलग,
हम दोनों के तो हैं सपने अलग,
मुड नही पाउँगा अब पीछे,
हम दोनों के तो हैं ज़न्नत अलग.

Monday, September 10, 2007

वो दिन

The poet inside turned romantic this time :)
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वो दिन भी कुछ अजीब थे,
जब छू लिया था तुने दिल को,
वो रातें भी कुछ खुशनसीब थी,
जब तुम आया करते थे ख्वाबों में.

वो तेरी जुल्फों से उन पलकों का छुप जाना,
फ़िर झटके से जुल्फें हटाके तेरा नज़ारे उठाना,
याद आता है फ़िर तेरे गालों का सुर्ख हो जाना,
कैसे भूलें उन नाज़ुक लबों से तेरा मुस्कुरा देना.

ज़चता नही कोई तुम्हारे सिवा,
तुने ऐसा क्या जादू कर दिया,
तेरी खुशी मुझे अजीज है,
दूर हो के भी तू करीब है.