Monday, November 26, 2007

गुमसुम

This is another attempt at romantic poetry. I like urdu words so much, they have elegance, softness and more power to portray romantic feelings. Enjoy!!
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आज क्यों है हम-तुम गुमसुम,
क्यों अँधेरी ही ये चाँदनी,
आज क्यों खामोश है धड़कन,
क्यों बेसुरी है हर रागिनी.

कशिश है थोड़ी थोड़ी,
पर कहा है वो आशिकी,
लफ्ज़ है बरसते,
पर कहा है वो शायरी

बेखुदी है तुमसे,
तुमसे ही प्यार है,
बंदिशे है कुछ ऐसी,
कि होठों पे इंकार है.

Thursday, November 15, 2007

दिल और दिमाग

आज फ़िर से सोच रहा हूँ मैं की क्यूँ,
दिल और दिमाग साथ नही चलते,
दोनों एक ही शरीर के है हिस्से,
फ़िर जाने क्यों है इतने झगड़ते.

दिल है जीने की वजह,
दिमाग जीने की राह बताये,
दिल है प्रेम दीपक,
दिमाग जीवन-ज्ञान सीखाये.

दिल के बात सुने कोई, या सुने दिमाग की,
ये उलझन जाने कौन सुलझाए,
दिल जाने एहसास, दिमाग अनुभव से रह दिखाए,
दोनों जब मिल जाए साथ तो सच्ची खुशहाली आए.

Friday, November 09, 2007

ये कैसी दीवाली

न दिया है, न बाती है,
माँ! ये कैसी दीवाली है,
न पटाखे है, न वो धूम है,
माँ! ये कैसी अधूरी खुशहाली है.

यूँ तो दोस्तों का साथ है माँ,
पर सर पे तेरा हाथ नही,
दस तरह की मिठाई है माँ,
पर तेरे हाथ का कुछ भी नही.

इतनी दूर चला जाऊंगा,
ये कब सोचा था, माँ.
तेरे बिन न कोई त्यौहार,
न कोई दीवाली है

Saturday, October 27, 2007

Some good poems

Both of these poems are close to my heart
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पथ की पहचान

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

पुस्तकों में है नहीं
छापी गई इसकी कहानी
हाल इसका ज्ञात होता
है न औरों की जबानी

अनगिनत राही गए
इस राह से उनका पता क्या
पर गए कुछ लोग इस पर
छोड़ पैरों की निशानी

यह निशानी मूक होकर
भी बहुत कुछ बोलती है
खोल इसका अर्थ पंथी
पंथ का अनुमान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

यह बुरा है या कि अच्छा
व्यर्थ दिन इस पर बिताना
अब असंभव छोड़ यह पथ
दूसरे पर पग बढ़ाना

तू इसे अच्छा समझ
यात्रा सरल इससे बनेगी
सोच मत केवल तुझे ही
यह पड़ा मन में बिठाना

हर सफल पंथी यही
विश्वास ले इस पर बढ़ा है
तू इसी पर आज अपने
चित्त का अवधान कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।

है अनिश्चित किस जगह पर
सरित गिरि गह्वर मिलेंगे
है अनिश्चित किस जगह पर
बाग वन सुंदर मिलेंगे

किस जगह यात्रा खतम हो
जाएगी यह भी अनिश्चित
है अनिश्चित कब सुमन कब
कंटकों के शर मिलेंगे

कौन सहसा छू जाएँगे
मिलेंगे कौन सहसा
आ पड़े कुछ भी रुकेगा
तू न ऐसी आन कर ले।

पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले।
---Harivansh Rai Bachchan.

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TWO roads diverged in a yellow wood,
And sorry I could not travel both
And be one traveler, long I stood
And looked down one as far as I could
To where it bent in the undergrowth; 5

Then took the other, as just as fair,
And having perhaps the better claim,
Because it was grassy and wanted wear;
Though as for that the passing there
Had worn them really about the same, 10

And both that morning equally lay
In leaves no step had trodden black.
Oh, I kept the first for another day!
Yet knowing how way leads on to way,
I doubted if I should ever come back. 15

I shall be telling this with a sigh
Somewhere ages and ages hence:
Two roads diverged in a wood, and I—
I took the one less traveled by,
And that has made all the difference.
--Robert Frost

Tuesday, October 23, 2007

तुमसे दूर

This one is little sad but romantic also :)
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तुझसे अलग पर तेरी पड्छाई से छिपता रहता हूँ,
तुमसे दूर पर तेरे ही करीब रहता हूँ,
देखता नही तुझे, पर खवाबों में मिलता रहता हूँ,
अब हाल कुछ ऐसा है बेरहम, तेरी तस्वीर से लिपटता रहता हूँ.

तुझे गिला है की मैं तुम्हे बदनाम करता हूँ,
तेरी-मेरी बातें सरे-आम करता हूँ,
शिकवा मत करो मेरी जान मुझसे,
मैं तो अब सब तेरे नाम करता हूँ.

उलझ न जाना ज़ज्बातों में,
ये तो सारा जहाँ कहता है,
भुला दू तुझे मैं अब,
ये तो मेरा खुदा कहता है.

Thursday, September 27, 2007

निशब्द

The idea of this poem was floating inside for quite sometime and today when I feel bored it has actually taken a shape. I will try to write a happy one next time :)
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शब्द तेरे दिल में चुभते रहे,
और मैं निशब्द खड़ा देखता रहा,
तेरी पड्छाई मुझसे उलझती रही,
और तेरी पड्छाई से दूर चलता रहा

मेरे एहसास हरपाल सिमटते रहे,
तुम हँसती रही, समझती नही,
दूर इतने हो गए है अब,
तेरी धड़कन भी दिल तक पहुचती नही

तेरा रास्ता अलग, तेरी मंजिल अलग,
हम दोनों के तो हैं सपने अलग,
मुड नही पाउँगा अब पीछे,
हम दोनों के तो हैं ज़न्नत अलग.

Monday, September 10, 2007

वो दिन

The poet inside turned romantic this time :)
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वो दिन भी कुछ अजीब थे,
जब छू लिया था तुने दिल को,
वो रातें भी कुछ खुशनसीब थी,
जब तुम आया करते थे ख्वाबों में.

वो तेरी जुल्फों से उन पलकों का छुप जाना,
फ़िर झटके से जुल्फें हटाके तेरा नज़ारे उठाना,
याद आता है फ़िर तेरे गालों का सुर्ख हो जाना,
कैसे भूलें उन नाज़ुक लबों से तेरा मुस्कुरा देना.

ज़चता नही कोई तुम्हारे सिवा,
तुने ऐसा क्या जादू कर दिया,
तेरी खुशी मुझे अजीज है,
दूर हो के भी तू करीब है.

Thursday, August 23, 2007

वो

वो हसी-हसी, वो खिली-खिली,
बोलती है पर, कुछ चुप-चुप भी.

वो ज़हाँ जाए, मच जाए हुडदंग,
वो ऐसे चली जैसे कोई पतंग,
उसकी उमंग, जैसे जलतरंग,
जब वो हो संग, बाजे मृदंग,
हर साँस में, उसकी सुगंध,
आने से उसके, जीवन में रंग.

Friday, August 17, 2007

तेरे सपने

Ham sab log sapne dekhte hai, unme se kai poore hote hai aur kuch toot bhi jate hai. This poem is dedicated to all those who dare to dream big :)
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तेरे सपने पूरे होंगे,
तू हार नही मान,
तू थक के नही बैठ,
जब लिया है कुछ ठान.

तू देख उस शिशु को,
जो सीख रहा है चलना,
चलने के लिए हर किसीको,
पड़ता है कई बार गिरना.

मत हो उदास कि,
सपने टँट गए तेरे,
ऐसा कौन हुआ इस जग में,
जिसने देखे नही झमेले.

किसी का सपना प्यार है,
सपनो से जीवन गुलज़ार है,
जो देखें नही सपने तो,
ये ज़िन्दगी बेजार है.

खुशी तो बाँटी है तुमने,
गम बाँट के भी देखले,
जो सपने है तेरे अधूरे,
मिल के करेंगे पूरे :)

Friday, August 10, 2007

जन्म-दिन,

This poem is dedicated to sneha, my sweet didi. Wish her all the best things in life on her birthday :). Keep smiling!
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वो हँसती रही है, हँसाती रही
हर मुस्कान में गम छुपाती रही,
वो डगमगाती रही, लडखडाती रही,
फ़िर भी चलने से वो घबडाती नही.

स्नेह से भर के वो सबका मन,
हर किसीको अपना बनाती रही,
जो जाने नही प्यार का मतलब,
उनपे भी वो प्यार लुटाती रही.

आँखें हंसती रही, आँखें रोती रही,
आँखें बोलती रही, आँखें डरती रही :),
जुबान से कह न पाए जो सब,
अनजाने में ही आँखें वो बताती रही.

मुबारक हो ये जन्म-दिन,
दुनिया आपकी जगमगाती रहे,
खुशी बाटें, और खुश रहे,
आज बस मेरी ये दुआ रहे.






Sunday, June 24, 2007

Some Special Lines

These lines are special for me as they are written during rest time (?? :) ) in hiking for ha ling peak, calgary.
http://www.geocities.com/truedino/haling.htm

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कैसे कह दू मैं दिल की बातें,
यूँ ही नही होती ऐसी मुलाकाते,
दूर हो के तुम न इतना सताते,
अपने दिल को गर समझ पाते
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पास हो के भी दूर हो,
जाने क्यों तुम मजबूर हो,
जो नज़र आता है तेरी आंखों में,
जुबान पे लाने से क्यों दूर हो.
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:) :) :)

Saturday, May 19, 2007

जिंदगी को समझने लगा हूँ मैं

उन उलझन भरी राहों पे बेफिक्र चलने लगा हूँ मैं ,
गिरते-गिरते ही सही अब संभलने लगा हूँ मैं,
अनकही, अनसुनी बातों को परखने लगा हूँ मैं,
हाँ, जिंदगी को समझने लगा हूँ मैं.

हारता ही आ रहा हूँ अब तलक बाजी,
जीतना भूलना नही हूँ ओ मेरे साथी,
क्या हुआ जो गुलिस्तान में फूल न खिले,
क्या हुआ जो मन का कोई मीत न मिले,
हरा हो गर चमन तो फूल खिल ही जायेंगे,
भरा हो प्यार दिल में तो मीत मिल ही जायेंगे.

तलाशता रहा हूँ इन चेहरों में दोस्ती,
धुंधले-धुंधले से लगते है सब चेहरे,
कुछ बहुत काले तो कुछ है मटमैले,
सोचते-सोचते अचानक रुक जाता हूँ मैं,
एक पहचाना सा मटमैला चेहरा दिख रहा है,

मेरा अक्स ही मुझपे हँस रहा है
भोर हो रही है अँधेरा रो रहा है.

Thursday, May 17, 2007

बंजारा

थाम लेते है लोग हाथ, कुछ पल के लिए,
ज़िन्दगी भर साथ निभाने का वादा, कोई नही करता,
दे देते है अपना साथ, फ़िर चल देते है सब,
अपने-अपने सफर पे, मंजिल तक साथ कोई नही चलता

जीवन के हर मोड़ पे इसके अर्थ बदल जाते है,
हर लक्ष्य साधके, फ़िर नए लक्ष्य बनते जाते है,
जो भी पा लिया है अबतक, सब व्यर्थ नज़र आते है

बंजारे हैं, मैं और मेरा दिल,
किसी एक जगह टिकते नही हम-दोनों,
भटकते रहते है जाने किस तलाश में,
बंजारे तो बस ऐसे ही होते है.

Wednesday, February 28, 2007

A Friend

Pretty face and broad smile,
She is someone full of life,
Sweet voice and sweet advice,
She is like bright sunlight.

In this journey which we call life,
She is chinook, if you feel wintry inside,
For such a friend, and such a dear,
I just want to say that I care :)


PS:Chinook winds have been observed to elevate winter temperatures

Monday, January 22, 2007

Awesome Ghazals from Mehdi Hasan

हमें कोई ग़म नहीं था ग़म-ए-आशिक़ी से पहले
न थी दुश्मनी किसी से तेरी दोस्ती से पहले।

है ये मेरी बदनसीबी तेरा क्या कुसूर इसमें
तेरे ग़म ने मार डाला मुझे ज़िन्दग़ी से पहले।

मेरा प्यार जल रहा है अरे चाँद आज छुप जा
कभी प्यार था हमें भी तेरी चाँदनी से पहले।

मैं कभी न मुसकुराता जो मुझे ये इल्म होता
कि हज़ारों ग़म मिलेंगे मुझे इक खुशी से पहले।

ये अजीब इम्तिहाँ है कि तुम्हीं को भूलना है
मिले कब थे इस तरह हम तुम्हें बेदिली से पहले।

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मैं होश मैं था तो उस पे मर गया कैसे,

यह ज़हर मेरे लबो से उतर गया कैसे,

कुछ उस के दिल मैं लगावट ज़रूर थी वरना,

वो मेरा हाथ दबा कर गुज़र गया कैसे,

जिसे भुलाये कई साल हो गए याकूब,

मैं आज उस की गली से गुज़र गया कैसे ,